हम फिर हार गए । अब ये बात कोई नयी बात नहीं लगती । पर मेरे जैसे क्रिकेटप्रेमी को ये पचता भी नहीं । कई सवाल घेरते हैं । क्या ये हार धोनी काल के अंत की शुरुआत होने का प्रतीक है ? क्या धोनी के तारों ने अब उनका साथ छोड़ दिया है ? कहाँ गए वो प्लान, वो रणनीति, वो यकृति जिससे वो विश्व के नंबर एक कप्तान बनने वाले थे? या शायद लोगो ने उनको विश्व का सबसे सफलतम कप्तान घोषित कर दिया था | हाँ, कई लोगों ने तो मान हीं लिया था ।
धोनी ने जब अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत की थी तो शायद उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा की आज वो इस मुकाम पर होंगे जहाँ वो देश को हार पे हार देंगे और फिर भी देश जीत की कयास लगाये रहेगा | धोनी ने जब कभी सपने में भी सपना देखा होगा तो भी उनको ये नहीं दिखा होगा की वो सचिन, पोंटिंग, गांगुली जैसे खिलाडियों की श्रेणी में गिने जायेंगे | पर भईया ये तो हमारी अवाम है जो जब चाहे जिसको भगवान बना दें | लोग भावनात्मक तरीके से जुड़ चुके है महेंद्र सिंह धोनी से | करीब से देखने पे लगता है जैसे धोनी नहीं उनके समर्थक हीं मैच खेल रहें हों |
धोनी जी जब भारतीय टीम के कप्तान बनाए गए थे तब टीम एक अच्छे मुकाम पे थी । बदबदाईये मत, बिल्कुल वो एक बेहतरीन टीम थी । बस टीम इंडिया २००७ के विश्व कप से बाहर हुई थी और पूरा देश इस दुःख में डूबा हुआ था | उस समय टीम को एक नए कप्तान की जरुरत थी , राहुल द्रविड़ के इस्तीफे के बाद टीम की कमान सँभालने को कोई तो चाहिए था| किसे कप्तान बनाया जाए बीसीसीआई के लिए टेढ़ी खीर जैसा था|
सचिन ने सहमती दी थी कि आप इस लड़के को एक बार मौका दीजिये , मैंने स्लिप में फील्डिंग करते समय इसे कई दफा सुना है । इस लड़के के पास काफी दिमाग है ये कप्तान बनाने लायक है | शायद सबकी सहमती लेके धोनी को कप्तान बनाया गया | सामने था T-20 वर्ल्ड कप और शानदार बात ये हुई कि भारत ये वर्ल्ड कप जीत गया । वर्ल्ड कप के हीरो तो कई सारे लोग थे , लेकिन सारा श्रेय सिर्फ कप्तान धोनी को मिला । कई लोग तो इतने भावुक हो गए थे की उन्होंने ये तक बोल दिया कि धोनी ने वो कर दिया जिसका सबको सदियों से इंतज़ार था | ये पहला T-20 वर्ल्ड कप था और लोगों ने कहा कि इस वर्ल्ड कप का इंतज़ार उनको सदियों से था | बहरहाल देश ख़ुशियाँ मना रहा था , जश्न में डूबा था | किसी को नहीं पता था की आगे क्या होने वाला है | टीम अच्छा खेलती गयी और काबिले तारीफ़ मुक़ाम पर जाती गयी| टेस्ट में नंबर १ की टीम बन गयी, ऑस्ट्रेलिया में सी बी सीरीज भी जीत गयी और कई जगह जाके अपना परचम लहराया| शायद इसका श्रेय पूरी टीम को जाना चाहिए था लेकिन वो हक सिर्फ धोनी जी को हीं मिला । जब भी टीम अच्छा खेली, लोगो ने उनको बतौर बेहतर कप्तान कई पुरस्कारों से नवाजा पर उसी बीच जब जब टीम की नैया डूबी लोगों ने टीम को दोष दिया कि इस टीम में फूट आ रही है | भईया विचित्र दुविधा है, विडम्बना तो है ही ।
लोगों ने कई बार धोनी को सौरव गांगुली सरीखे कप्तान से तौला और कई बार धोनी को सबसे ऊपर बताया । ऐसी बेबुनियादी तुलना से मैं इस लेख को दूर हीं रखूँगा । पर शायद रख नहीं पाउँगा ।
मुद्दा ये नहीं की धोनी को सबसे ऊपर बताया जा रहा, तकलीफ ये है की धोनी की तारीफ में औरो की बुराइयाँ की गयी जो कि खेल भावना को ठेस पहुँचाने जैसा है | सब आँकड़े बनाते हैं धोनी को सर्वोपरि बताने को । भई अगर आकड़ों पे हीं नज़र डालनी है तो और भी आकडे़ं हैं जिनपे शायद कई लोगो की नज़र नहीं जाती |२००७ में गंभीर , पठान , युवराज के योगदान थे जिन्हें कदापि भुलाया नहीं जा सकता , पर वो किसे याद है । ऑस्ट्रेलिया में जब हमने झंडा गाड़ा, वहाँ भी गंभीर, सचिन ने एड़ी – चोटी का जोर लगाया था, प्रवीण कुमार ने भी अपना लोहा मनवाया था, लेकिन ये शायद किसी को नहीं दिखा |
हमने “अपने घर” में एक वर्ल्ड कप जीता , पूरे वर्ल्ड कप के दौरान माही का बल्ला नहीं चला , लेकिन आखिरी मैच में अपने आप को युवी , रैना से ऊपर लाके सबको आश्चर्यचकित कर दिया, और उस दिन भी किसी को गंभीर ,कोहली नहीं याद रहे | पूरे विश्व कप में ज़हीर को सबने अनदेखा हीं किया| टीम इंडिया २००७ के बाद t 20 वर्ल्ड कप के सुपर ८ में नहीं पहुच पाया है । इंग्लैंड में हार, ऑस्ट्रेलिया में हार, साउथ अफ्रीका में करारी हार, और अब न्यूज़ीलैंड में एक बार और करारी हार, इन सब के बीच एक चैंपियंस ट्राफी की जीत में ये सारी हारें छुपायी गयी | टेस्ट में ६ जीत, जिसमें २ बांग्लादेश के ख़िलाफ़ | घर में १२ टेस्ट में १० जीते | पर बाहर निकलते हीं तबियत ख़राब । भईया ठंडी थी, सर्दी लग गयी । सो ऑस्ट्रेलिया , इंग्लैंड में जीते नहीं | बड़े खिलाडी मनमुटाव के चलते टीम से बाहर होते गए | तानाशाही चलती रही टीम में | कुछ सपोर्ट तो बीसीसीआई से भी मिलता रहा | लोगों ने काफ़ी बार गांगुली से बेहतर माना धोनी को । पर मैं समझता हूँ कि गांगुली ने जो किया वो शायद ही कोई कर पाए | मैं ना तो धोनी का समर्थक हूँ और ना ही आलोचक, परन्तु धोनी की बड़ाई में जब और खिलाडियों की बुराई होती तो शायद थोड़ी तकलीफ होती है| अपने खास लोगो को कुछ ज़्यादा ही मौका दिया गया | जो थोड़ा ख़तरा बने, उनको पहले ही बाहर फेंक दिया गया |
मैंने एक प्रचार में देखा था धोनी को कहते हुए , यू नो एक्सपर्ट वुड हैव टोल्ड मी टू …..यू नो बट आई हैवे माई ओन आईडिया यू नो….. । बस एक ही सवाल है की अब वो आईडिया कहाँ चले गए ?? क्या पिछले १२ टेस्ट में वो आईडिया ढूंड नहीं पाए ? ४ सीरीज हार कर भी आईडिया नहीं आया ?? और आप हमारे सबसे सफल कप्तान है ? आर यू किडिंग मी ?? आप धोनी और गांगुली की तुलना कैसे कर सकते है ??
गांगुली ने जब टीम इंडिया का दामन पकड़ा था तब टीम मैच फिक्सिंग के बुरे दौर से चल रही थी , या यूँ कहिये की कोई टीम हीं नहीं थी | गांगुली ने टीम को एक साथ बंाधा । नये लोगों को देश के कोने कोने से लाए । सहवाग , युवराज, हरभजन , कैफ, ज़हीर , गंभीर जैसे खिलाड़ी इस बीच उभरे । ये खिलाड़ी जोशीले थे , युवा थे । इन खिलाडियों को सचिन , द्रविड़, लक्षमण , कुंबले जैसे अनुभवी लोगों का साथ मिला और इन्होंने ऐसे कारनामे किये जिसने विश्व जगत में हलचल मचा दी | कौन भूल सकता वो नैटवेस्ट का फाइनल जिसमे गांगुली ने कप्तानी पारी खेली थी और सामने ये योद्धा की तरह लडें़ थे | और ख़ुशी जाहिर करने का तरीका विश्व ने तो देख ही लिया था | ये वही टीम थी जिसमे वर्ल्ड कप २००३ में सभी टीम के पसीने छुटा दिए थे | हम सिर्फ २ मैच हारे थे वो भी ऑस्ट्रेलिया से | कलकत्ता टेस्ट तो शायद ही कोई क्रिकेट प्रेमी के जेहन से जाएगा, एक कप्तान में हिम्मत होनी चाहिए होती है की वो फॉलोऑन खेलते हुए भी अपनी पारी घोषित करके टेस्ट को जीते और इतिहास के पन्ने में अमर हो जाए| अजी हिम्मत चाहिए होती है अपने गेंदबाज पे भरोसा होने के लिए | नंबर ७ से नंबर २ पे ले गए गांगुली | पर आज टेस्ट का आलम ये है की हमने बाहर में सिर्फ ६ जीत दर्ज की है और आख़िरी १० टेस्ट का ना हीं पूछे । हाल ही में हमने अफ्रीका के साथ जीता हुआ टेस्ट ड्रा करवाया | कहानी तो सबको पता ही होगी, मेरी सोच में वो हार है टीम इंडिया की ! धोनी जी घर के बाहर मैच हारने का रिकॉर्ड बनाने जा रहे है| भारत की सलामी जोड़ी निरंतर असफल हीं रही है | आधी से ज़्यादा टीम चेन्नई सुपर किंग्स की है | ये एक कठोर सत्य है | अपने लोगो का समर्थन किया है हमेशा से धोनी ने । काफी मेहनत की है अपने करियर के लिए और उतना ही किस्मत ने साथ भी दिया है । लेकिन अच्छा समय हमेशा नहीं रहता और शायद ये भी सत्य है कि जो जितना जल्दी ऊपर जाता है उतना ही जल्दी नीचे भी आता है |
शायद ये डाउनफाॅल की शुरुआत है | देखिये अब किस्मत कहाँ ले जाती है | शायद पाकिस्तान या बांग्लादेश भेज दे | बाहर देश का रिकॉर्ड तो सुधार ही लेंगे, बीसीसीआई तो आपका ही है |