“कमी नहीं कद्रदां की अकबर, करो तो पहले कमाल पैदा”
मशहूर उर्दू शायर अकबर इलाहाबादी का उपरोक्त शेर आज के समय में बिहार कैडर के चर्चित आईपीएस अधिकारी विकास वैभव पर बिलकुल सटीक बैठता है. अनन्य इतिहास-प्रेम से सराबोर विकास वैभव ने देश के बहुमूल्य विरासत को सहेजने, सवांरने एवं संरक्षित करने की दिशा में वास्तव में बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है. यह, इस कार्य से उनकी सच्ची दीवानगी का ही असर है कि आज सोशल मीडिया पर वह बिहार के सबसे चर्चित आईपीएस अधिकारी बन चुके हैं. उन्हें फेसबुक पर फॉलो करने वालों की संख्या एक लाख से भी ज्यादा हो गयी है. ज्यादा से ज्यादा लोग उनसे प्रतिदिन जुड़ रहे हैं. उनका ब्लॉग ‘साइलेंट पेजेज’ भी बहुत लोकप्रिय है जिसपर वह ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में विस्तृत रूप से लिखते रहते हैं जिसके बारे में या तो इतिहासकारों का ध्यान नही गया है या जो ऐसा होने पर भी उनकी उपेक्षा का शिकार है.
विकास वैभव से मेरी पहली मुलाकात कुछ महीने पहले पटना स्थित उनके कार्यालय में हुई थी. मैंने उनसे उनके इतिहास-प्रेम के ऊपर बातचीत के लिए एवं इसी सम्बन्ध में साक्षात्कार हेतु समय माँगा था. उन्होंने सहर्ष मुझे समय दे दिया. दोपहर का वक्त था जब मैं उनके कार्यालय पहुंचा. मेरे साथ मेरा छोटा भाई भैरो भी था जो कि दिल्ली के एक कॉलेज में पत्रकारिता का छात्र है. र्कार्यालय के अन्दर प्रवेश करते ही उन्होंने अपनी स्वाभाविक मुस्कान के साथ हमारा स्वागत किया. हमारे आगमन से पूर्व वह अपनी लैपटॉप पर नज़रें टिकाये शायद कुछ पढ़ रहे थे. सामने टीवी पर न्यूज चल रहा था, मगर बिना आवाज़ के. उन्होंने बैठने के लिए कहते हुए यात्रा में कोई परेशानी तो नही हुई, इसके बारे में जानना चाहा. हमने उन्हें अपने सकुशल यात्रा की जानकारी दी. एक-दो मिनट की औपचारिक बातचीत के बाद उन्होंने पूछा- चाय लेंगे? हमारी ‘हाँ’ के बाद उन्होंने दो कप चाय मंगवाई और फिर आरम्भ हुआ विभिन्न-विषयों पर बातचीत का लम्बा सिलसिला.
साक्षात्कार में तो बहुत कम बातें हुईं चूँकि उसका विषय-वस्तू सिर्फ उनके इतिहास-प्रेम और विरासत से उनके गहरे लगाव से सम्बंधित था परन्तु साक्षात्कार के औपचारिक शुरुआत से पहले ही उनसे बहुत सारी बातें हुईं, जिसमे उन्होंने व्यक्तिगत एवं पुलिसिया जीवन से सम्बंधित बहुत सारे मजेदार किस्से-कहानियां साझा किये. कुछ स्वयं के बचपन की कहानियां भी साझा की. यह जानने के बाद की मैं बिहटा से हूँ, उन्होंने पटना के दानापुर में सहायक आरक्षी-अधीक्षक के पद पर रहने के दौरान बारम्बार बिहटा आने की कहानियां सुनाई और यह कि कैसे वह वाहनों के छत पर बैठाकर नियम का उल्लंघन करनेवालों के साथ सख्ती से पेश आते थे. बातचीत के दौरान बीच-बीच में हंसने-हँसाने का दौर भी चलता रहा. पुरे मुलाक़ात के दौरान उन्होंने एक वक्त के लिए भी ऐसा महसूस नही होने दिया कि मैं एक इतने बड़े आईपीएस अधिकारी से बात कर रहा हूँ. वह पूर्णतः एक मित्र की तरह पेश आये. एक इतने बड़े आईपीएस अधिकारी जो की अपनी सख्त-मिजाजी एवं अनुशाषित जीवन-शैली के लिए इतना लोकप्रिय है, का ऐसा मित्रवत व्यवहार मेरे लिए वास्तव में चकित करने वाला था. वह इस तरह बात करते रहे जैसे मुझे वर्षों से जानते हों. पूरी बातचीत के दौरान शायद ही कभी मुस्कान ने उनके चेहरे को अलविदा कहा हो.
वह इस बात से बहुत प्रसन्न दिख रहे थे कि लोग उनके ब्लॉग ‘साइलेंट पेजेज’ को गंभीरतापूर्वक पढ़ते हैं. आखिर एक लेखक को चाहिए भी क्या? एक लेखक के लिए इससे बड़ी प्रसन्नता और संतुष्टि की बात क्या हो सकती है कि लोग उसकी लेखनी को गंभीरतापूर्वक पढ़ें, और इसी लेखनी की वजह से अधिक से अधिक लोग उनसे प्रतिदिन जुड़ते जाएँ? एक लेखक के लिए हर्ष और संतोष का चरमोत्कर्ष बिंदु है यह. यही हर्ष और संतोष पूरी बातचीत के दौरान उनके चेहरे पे साफ़-तौर पर झलक रहा था. उस समय उन्हें फेसबुक पर फॉलो करने वालों की संख्या मात्र चालीस हज़ार के आसपास थी परन्तु आज कुछ ही महीनों के अंतराल में यह संख्या लाखों में पहुँच गयी है, और यह सिर्फ और सिर्फ इस लिए कि वह जो कुछ लिखते हैं ज्ञानवर्धक बातें लिखते हैं, गूढ़ बातें लिखते हैं, राजनितिक टिका-टिपण्णी बिलकुल भी नही करते, अधिकाधिक अनुसंधान के बाद ही कुछ लिखते हैं और यह ह्रदय से चाहते हैं कि जनमानस में विशेषकर युवाओं में अपने देश के वैभवशाली इतिहास के प्रति गर्व का भाव प्रस्फुटित हो और अपने बहुमूल्य विरासत को संरक्षित करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान हो.
मैंने उनसे पूछा कि आप एक लेखक और पुलिस अधिकारी की जीवनशैली के बीच तालमेल कैसे बिठा पाते हैं? इसपर उन्होंने एक उदाहरण देते हुए मुझे समझाया कि समर्पण किसी भी लक्ष्य को आसान बना देता है. आज हमारे देश को विकास वैभव जैसे अनेक अधिकारियों की जरुरत है जो समाज में अनुशासन एवं कानून का राज स्थापित करने के साथ-साथ शिक्षा एवं ज्ञान का राज स्थापित करने में भी समानांतर रूप से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाये, जो समाज में एक उच्च आदर्श स्थापित करें, जो गिरते नैतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करे, जिनसे देश के लोग विशेषकर बच्चे एवं युवा जो किसी भी समाज के क्रमशः दर्पण एवं भविष्य होते हैं, प्रेरणा ग्रहण कर पायें.
