मेरी प्यारी सड़क,
आशा है तुम जहाँ कहीं भी होगी सफ़र में होगी । आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है । तुम कब से मेरी ज़िंदगी का हिस्सा हो मगर कभी तुमसे बात नहीं की । पता है लोग तुमसे नफ़रत करने लगे हैं । नफ़रत करने वाले वे लोग नहीं हैं जो सड़क पर रहते हैं बल्कि वे लोग हैं जो कभी कभार सड़क पर उतरते हैं मगर कितनी बार कोई उतरे उसे लेकर भ्रमित और क्रोधित हैं ।
धूमिल की एक कविता की किताब का नाम ही है संसद से सड़क तक । दो चार दिनों से अख़बारों और टीवी में कई बयान आ रहे हैं जिनमें सड़क को ग़ैर वाजिब और ग़ैर लोकतांत्रिक जगह के रूप में बताया जा रहा है । लोगों को आपत्ति है कि कोई बार बार सड़क पर उतर आता है । सरकार सड़क पर आ गई है । तुम जानती ही होगी कि सड़क पर आने का एक मतलब यह भी होता है कि किसी का घर बार सब चला गया है । वो बेघर और बेकार हो गया है । कई अंग्रेज़ी अख़बारों में तुम्हें स्ट्रीट लिखा जा रहा है । इस भाव से कि स्ट्रीट होना किसी जाति या वर्ग व्यवस्था में सबसे नीचले और अपमानित पायदान पर होना है । क्या राजनीति में भी सड़क पर आना हमेशा से ऐसा ही रहा है या आजकल हो रहा है ।
सड़क, तुम्हें याद है न कि इससे पहले तुम्हारे सीने पर कितने नेता कितने दल और कितने आंदोलन उतरते रहे हैं । ख़ुद को पहले से ज़्यादा लोकतांत्रिक होने के लिए दफ़्तर घर छोड़ सड़क पर आते रहे हैं । सड़क पर उतरना ही एक बेहतर व्यवस्था के लिए व्यवस्था से बाहर आना होता है ताकि एक नये यात्री की नई ऊर्जा के साथ लौटा जा सके । सड़क तुम न होती तो क्या ये व्यवस्था निरंकुश न हो गई होती । पिछले दो दिनों में सड़क पर आने का मक़सद और हासिल के लिए तुम्हें ख़त नहीं लिख रहा हूँ । यह एक अलग विषय है । जो राजनीतिक दल अपनी क़िस्मत का हर फ़ैसला बेहतर करने के लिए सड़क पर उतरते रहे वही कह रहे हैं कि हर फ़ैसला सड़क पर नहीं हो सकता । क्या सड़क ने कभी सरकार नहीं चलाई । महँगाई के विरोध में रेल रोक देने या ट्रैफ़िक जाम कर देने से कब महँगाई कम हुई है । हर वक्त इस देश में कहीं न कहीं कोई तुम्हारा सहारा लेकर राजनीति चमकाता रहता है । तुम तो यह सब देखती ही आ रही हो ।
प्यारी सड़क, तुम्हें कमतर बताने वाले ये कौन लोग हैं । उनकी ज़ात क्या है । कौन हैं जिन्हें किसी के बार बार सड़क पर उतर आने को लेकर तकलीफ़ हो रही है । क्या वे कभी सड़क पर नहीं उतरे । लेकिन सड़क पर उतरना अमर्यादित कब से हो गया । कब से ग़ैर लोकतांत्रिक हो गया । सत्ता की हर राजनीति का रास्ता सड़क से ही जाता है । तो फिर कोई सड़क पर रहता है तो उसमें तुम्हारा क्या दोष । रहने वाले का क्या दोष । दोष तो उसकी सोच में निकाला जाना चाहिए न । तुम्हें लोग क्यों अनादरित कर रहे हैं । तुम तो जानती ही होगी कि कितने नेता तुम पर उतरे और पानी के फ़व्वारे से भीग कर नेता बन गये । संघर्ष कहाँ होता है कोई बताता ही नहीं । संघर्ष कमरे में होता है या सड़क पर । क्या तुम पर उतरना उस विराट का नाटकीय या वास्तविक साक्षात्कार नहीं है जिसकी कल्पना में नेता सोने की कुर्सी देखते हैं।
प्यारी सड़क समझ नहीं आता लोग तुमसे क्या चाहते हैं । तुमसे क्यों किसी को घिन आ रही है । तुमने तो किसी को रोका नहीं उतरने से फिर ये बौखलाहट क्यों । तुम तो अपने रास्ते चलने वाली हो लेकिन कोई तुम पर आकर भटक गया तो इसमें तुम्हारा क्या क़सूर । तुमसे लोगों को क्यों नफ़रत हो रही है ख़ासकर उन लोगों को जो सड़क पर उतरना नहीं चाहते या नहीं जानते । तुम इन तमाम मूर्खों को माफ़ कर देना । कोई नेता मिले तो कहना यार बहुत हो गया कुर्सी कमरा अब ज़रा सड़क पर तो उतरो । सड़क पर उतरना सीखना होता है । सड़क पर उतरना नकारा होना नहीं होता है ।
तुम्हारा सहयात्री,
रवीश कुमार

Acclaimed TV journalist & News presenter working with NDTV India. Hails from Bihar, based in Delhi.