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ये फोटोशॉप, वीडियोशॉप, खबरोंशॉप का ज़माना है।

Published Date: March 3, 2016

हर दिवाली एक तस्वीर निकलती है, वायरल होती है.. नासा के द्वारा खींची गयी इंडिया की। फिर एक और ख़बर बेहद वायरल होती है कि यू.ऐन. ने हमारे ऐन्थम को विश्व की सर्वश्रेष्ठ ऐन्थम घोषित किया है। दोनो ही ख़बरें ग़लत हैं, पर ख़ूब बिकती हैं, ख़ूब चलती हैं बेवक़ूफ़ों की बारात में। इनको लपेट के लोग साझा करते हैं और बेहद गर्व महसूस करते हैं। ये सारे सोशल मीडिया के पोस्ट्स हमें बताते हैं कि किस तरह ऐज ऐन इन्टरनेट यूज़र हमलोग फ़ेल हो रहे। पर मोटे तौर पर इनसे कुछ ख़ास नुक़सान नहीं। ग़लत ख़बरों का आना, और अनगिनत लोगों द्वारा इसे सही समझ के वायरल बनाना। पर किसी चीज़ की सच्चाई जाने बिना उसपे आकलन करना, राय बनाना, यानी की जज्मेंटल होना, कहाँ तक सही है और क्या ये तरीक़ा किसी घोर अंधेरे की तरफ़ हमें धकेल सकता है?

ये मैं सोच ही रहा था कि ये जे.एन.यू. की घटना देश में हुई। एक विडीओ आया, ख़ूब बिका, सारे के सारे लोगों में अपनी प्रतिक्रियाएँ दे डाली। बहुत अच्छा देश है हमारा, बेहद अच्छे लोग। पर सबके अंदर एक ग़ुस्सा है। किसी का अपने बॉस, नौकरी के लिए। किसी का अपने परिवार के लोगों पे, किसी का पड़ोसियों पर तो किसी को अपनी ज़िंदगी से। जी भर के लोगों ने अपना ग़ुस्सा जे.एन.यू. पर उतारा। जो लड़कियों की तस्वीर आयी उनको रन्डी कहा, जो लड़के दिखे उनके माँ और बहनो को। कुछ दोस्तों ने बास्टर्ड भी कहा। भई जी भर गरियाया, क्या बताऊँ, क्या बेहतरीन गालियाँ। कल से नया विडीओ सामने आ रहा जो बता रहा कि उनके से एक विडीओ, जो कि सबसे ज़्यादा चर्चे में है, वही फ़ेक है, डॉक्टर्ड है। मुझे कई लोगों से अनेक बातें पता चली हैं, आख़िर वहाँ हुआ क्या है। पर मैं उसपे टिप्पणी करूँगा ही नहीं। क्यों? क्योंकि वो सब सुनी सुनाई बातें हैं। ये बात अलग है की मुझे वही सच लगता पर फिर भी। वो सुनी सुनाई बातें हैं। जैसे ये सारे विडीओ। दिखी दिखायी, जिसको एन.आई.ऐ. ने भी ग़लत माना है। पर छोड़िए। सच्चाई में क्या है। उससे किसको क्या मतलब। हमें ग़ुस्सा था हमने थूक की तरह निकाल दिया।

ये जो भी देशप्रेमी जो इतना सोशल नेट्वर्क पर उछलते हैं, ये जानते हैं यहाँ कुछ भी बोलने से कुछ बिगड़ नहीं जाएगा। कमज़ोर पे लाठी चलाने की दुनिया है। जिसको मर्ज़ी बोलो, जिसे मर्ज़ी माँ-बहन, बास्टर्ड गरियाओ। कुछ एन.आर.आई. देशप्रेमी भी हैं जिनके अंदर देश के लिए कुछ भी ना कर पाने का गिल्ट है तो वो सबको गाली निकाल कर संतुष्ट हो जाते। चलो देश के लिए कुछ तो किया। वो टैक्स नहीं देते पर जोड़ रखा है कि कितना पैसा जे.एन.यू. वाले खा रहे देश का। टैक्स देने वाले भी बोल रहे, टैक्स चोरी करने वाले भी बोल रहे, टैक्स नहीं देने वाले भी बोल रहे। अपने अपने कम्प्यूटर/मोबाइल पे सब के सब नम्बर वन देशभक्त हैं। राष्ट्रवाद का मतलब पता हो या ना हो, पूँजीवाद का मतलब पता हो या ना हो, जे.एन.यू. (इसे एक मेटाफ़र की तरह समझे) का मतलब पता हो या ना हो। विचारधारा की अभिव्यक्ति कितनी ज़रूरी है ये ज्ञान किसको कहाँ। बस कोई कुछ ख़बर छोड़ दिया, सब बिना पड़ताल किए उसको साझा करते हैं, और उसपे विशेष टिप्पणी जड़ते हैं। लेटेस्ट इग्ज़ैम्पल है रतन टाटा वाला। “जे.एन.यू. के छात्रों को टाटा कम्पनी नौकरी नहीं देगी, जो देश का ना हुआ वो कम्पनी का क्या होगा।” जितनी बार पढ़ता हूँ, उतनी बार हँसता हूँ। कभी कभी मुझे अपनी बुद्धि पे भी हँसी आती है। फ़ैन मूवी का ट्रेलर में वो जो नया लड़का है, सब उसे शाहरुख़ खान बोल रहे। अबे सालों वो पचास साल का बुड्ढा अचानक से अठारह का कैसे दिखने लगा। जो इन्टरनेट पे आया, तुमने सच मान लिया। अरे भूतनी के, कुछ तो शर्म करो।

पी.एस.- असली कहानी हम लेके आ रहे, जल्द ही। तब तक बने रहिए, बेवक़ूफ़, सिर्फ़ एक्सप्रेस टुडे पे। धन्यवाद।।