श्रृंगार शब्दों से
कविता की भाषा में
पढूं तेरे लिए
ज़ुबाँ इसी आशा में
तारीफ़ जो तूने की
पढ़ना हुआ सफल
ज़िन्दगी मिल गयी
एक नई परिभाषा में
तुम हो तो इश्क़ है
बिन तेरे ही अश्क है
गीतों में जो तुम नहीं
लिखना ही खुश्क है
कुछ लिख मैं रहा
बैठो जिज्ञासा में
पढूं तेरे लिए
ज़ुबाँ इसी आशा में
ज़िन्दगी मिल गयी
एक नई परिभाषा में

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