पर्व त्योहारों में सबसे सुंदर, आकर्षक और प्रकृति के नज़दीक मुझे छठ लगता है। मूल स्वरूप में यह पर्व हर तरह के कर्मकांडी पाखंडों और अंधविश्वासी रिवाज़ों से बहुत दूर है।
छठ पर्व में व्रतियों और प्रकृति में सीधा रिश्ता बनता है। बीच में पंडित पुजारियों के अनुष्ठान नहीं होते। आम तौर पर छठ में जाति समुदाय का भेदभाव भी कम रहता है। एक ऐसा पर्व जिसमें मूर्ति मंडप पंडाल पंडित भोज भंडारा जागरण की नहीं, सिर्फ जल फल फूल सूर्य और स्वच्छता की आवश्यकता है। मतलब कि अमीर गरीब छोटा बड़ा हर कोई समान रूप में प्रकृति से जुड़ाव का यह पर्व मना सकता है। इसलिए छठ में जनपर्व बनने की भरपूर संभावना है। तभी तो शायद छठ को लोकआस्था का महापर्व भी कहा जाता है।
सबसे सुंदर बात है कि छठ पर्व हमें प्रकृति के साथ उस अटूट संबंध की याद दिलाता है जो जीवन का आधार है। उन जलस्रोतों के पास ले जाता है जिनके तट पर मानव सभ्यता का कभी सृजन हुआ था। अक्सर हमने लोगों को यह कहते सुना है कि सब उगते सूरज को ही प्रणाम करते हैं। लेकिन छठ हमें ढलते सूरज को भी पूरी निष्ठा से नमन करना सिखाता है।
हाल के वर्षों में यह देखकर मन थोड़ा दुखी ज़रूर होता है कि छठ जैसे पवित्र पर्व में भी लोग ध्वनि प्रदूषण और शोर शराबा घुसेड़ने लगे हैं। कुछ लोगों को शायद लगता है कि डीजे के बिना पर्व हो ही नहीं सकता। छठ के सौम्य गीतों की जगह अल्हड़ किस्म के गाने लेने लगे हैं। हम बस इन कुछ बातों का ध्यान रखें तो छठ की गिनती हिन्दू धर्म के सबसे सुंदर और तार्किक पर्वों में हो सकती है।
लोकआस्था के महापर्व की आपको ढेरों शुभकामनाएं!

Political Activist and President of Yuva Halla Bol. Likes Painting, Poetry & People.